Friday, February 18, 2011

Shri Gayatri Chalisa

गायत्री चालीसा

(दोहा)  
ह्रीं श्रीं कलीं मेघा प्रभा, जीवन ज्योति प्रचंड 
शान्ति क्रान्ति जागृति प्रगति, रचना शक्ति अखंड
जगतजननी मंगल करनी, गायत्री सुखधाम 
प्रणवों सावित्री स्वधा, स्वाहा पूरण काम 

(चोपाई)
ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ युतजननी, गायत्री नित कलिमल दहनी
अक्षर चौविस परम पुनीता, इनमें बसे शास्त्र श्रुति गीता
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा, सत्य सनातन सुधा अनूपा
हंसारूढ़ सितम्बर धारी, स्वर्ण कान्ति शुची गगनबिहारी
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला, शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला 
ध्यान धरत पुलकित हित होई, सुख उपजत दुःख दुरमति खोई
कामधेनु तुम सुर तरु छाया, निराकार की अदभुत माया 
तुम्हरी शरण ग्रहे जो कोई, तरेई सकल संकट सो सोई 
     सरश्वती लक्ष्मी तुम काली, दीपेइ तुमहारी ज्योति निराली
तुमहरी महिमा पार न पावें, जो शारद शतमुख गुण गावेंइ 
चार वेद की मातु पुनीता, तुम ब्रह्माणी गौरी सीता 
महा मंत्र जितने जग माहीं, कोऊ गायत्री सम नाहीं
सुमिरत हित में ज्ञान प्रकासेई, आलस पाप अविद्या नासेई
सृष्टि बिज जगजननी भवानी, कालरात्रि वरदा कल्याणी
ब्रह्मा विष्णु रूद्र सुर जे ते, तुम सों पावेई सुरता ते ते 
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे, जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे 
महिमा अपरंपार तुमहारी, जय जय जय त्रिपदा भयहारी
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना, तुम सम अधिक न जग में आना 
तुमहिं जानी कछु रहेई न शेषा, तुमहिं पाय कछु रहे न कलेशा 
जानत तुमहिं, तुमहिं हवेइजई, पारस परसि कुधातु सुहाई
तुम्हरी शक्ति दीपेइ सब ठाई, माता तुम सब ठौर समाई
ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड धनेरे, सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे
सकल सृष्टि की प्राण विधाता, पलक पोषक नाशक त्राता
मातेश्वरी दया व्रत धारी, तुम सन तरे पातक भारी
जापर कृपा तुम्हारी होई, तापर कृपा करे सब कोई
मंद बुध्धि ते बुध्धि बल पावेंइ, रोगी रोग रहित हो जावें
दारिद्र मिटे कटेइ सब पीरा, नासेई दुःख हरेई भाव भीरा  
गृहकलेश चित चिन्ता भारी, नासेई गायत्री भय हारी
संततिहीन सुसंतति पावें, सुख संपति युत मोद मनावें
भुत पिशाच सबई भय खावें, यम के दूत निकट नहीं आवे
जो सधवा सुमिरे चित लाए, अक्षत सुहाग सदा सुखदाई   
घर वर सुख प्रद लहेंइ कुमारीं, विधवा रहे सत्य व्रतधारी
जयति जयति जगदम्ब भवानी, तुम सम और दयालु न दानी 
जो सदगुरु सों दीक्षा पावें, सो साधन को सफल बनावें
सुमिरन करे सुरुचि बडभागी, लहेई मनोरथ ग्रही विरागी
अष्टसिध्धि नवनिधि  की दाता, सब समर्थ गायत्री माता 
ऋषि मुनि जती तपश्वी जोगी, आरत अर्थी चिंतित भोगी
जो जो शरण तुम्हारी आवे, सो सो मन वांछित फल पावें
बल बुध्धि विद्या शील स्वभाऊ, धन वैभव यश तेज उछाऊ
सकल बढें उपजे सुख नाना, जो यह पाठ करे धरि ध्याना.

(दोहा)
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोई 
तापर कृपा प्रसन्नता, माँ गायत्री की होय                
                

               
                                                                        

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